Tuesday, February 27, 2007

Main aur Meri Tanhai

लोग कहते हैं हुई थी बारिश उस रोज़,
उन्हें क्या पता ग़म-ए-हिज़्र में रोया था कोई।

यूँ साए देख कर खुश होते हैं सब ग़ाफ़िल,
उन्हें क्या पता कल धूप में सोया था कोई।

कतरा-कतरा कर के मुस्कुराते हैं सभी,
उन्हें क्या पता चश़्म-ए-तर का रोया था कोई।

मंज़िल-ए-आखिर को चलते हैं अब राहिल,
उन्हें क्या पता इन राहों पर खोया था कोई।

रहते है साथ साथ मै और मेरी तनहाई--
करते है राज की बात मै और मेरी तनहाई--

दिन तो गुज्ञर जाता है लोगों की भीर मे--
करते है बसर रात मै और मेरी तनहाई--

सांसो का क्या भरोसा कब छोड जाये साथ--
लेकिन रहेंगे साथ मै और मेरी तनहाई--

आए ना तुम्हे याद कभी भूल कर भी शायद--
करते है याद तुम्हे मै और मेरी तनहाई--

आ के पास क्यं दूर हो गये--?????
करते हैं तुम्हारा इंतजार मै और मेरी तनहाई

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